नन्हें बच्चे भी हो रहे मोबाइल के आदी, उन्हें दोबारा ऐसे लगाएं पढ़ाई पर…

नई दिल्ली। छोटी सी उम्र में बच्चों ने जानलेवा कोरोना वायरस महामारी के कारण घर और समाज के कई ऐसे उतार-चढ़ाव देखे, जिन्हें समझ पाने या साझा कर पाना वे अभी नहीं जानते। इसी को देखते हुए बच्चों के महामारी के अनुभवों से उनके पढ़ने में आयीं रुकावटों को समझकर हम सबको उन्हें आगे बढ़ने में मदद करनी है। यही इस साल के बाल दिवस की थीम भी है।

Mobile Addiction

यूनिसेफ के मुताबिक, महामारी के कारण बच्चे जब बाहर जाकर हमउम्र बच्चों संग खेल नहीं पा रहे थे, तब उन्होंने मोबाइल, टीवी या कंप्यूटर ज्यादा समय देना शुरू कर दिया। इस आदत ने न सिर्फ बच्चों की नींद की आदत पर असर किया बल्कि कइयों को आंखों से जुड़ी परेशानियां भी आने लगीं। यूनिसेफ ने कई बार चिंता जतायी कि घर में रहते हुए दो साल से छोटे बच्चे भी मोबाइल के आदी हो रहे हैं जो बेहद खतरनाक है। बहुत से बच्चे भोजन के समय और सोने से पहले वीडियो देखने या गेम के आदी हो गए थे।

और पढ़ें : जुआ खेलते 11 लोगों को तिलैया पुलिस ने गिरफ्तार…

गौरतलब है कि 2 साल से छोटे बच्चों का स्क्रीनटाइम बिल्कुल नहीं होना चाहिए। जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन ने कई देशों में किए एक अध्ययन में पाया कि महामारी के बाद से बच्चों में घबराहट और तनाव का स्तर दोगुना हो गया है। इस मामले में कई विशेषज्ञ बताते हैं कि एकल परिवारों के कारण तालाबंदी के दौरान बच्चों संग खेलने या उनका मन बहलाने के लिए कोई हमउम्र बच्चा और बुजुर्ग दादा-दादी मौजूद नहीं थे। वर्क फ्रॉम होम के कारण घर में मौजूद होते हुए भी अभिभावक उन पर ठीक से ध्यान नहीं दे पा रहे थे।

Advertisement

वहीं, कम संसाधन वाले परिवारों के बच्चों के मनोरंजन का एकमात्र जरिया उनके स्कूली दोस्त स्कूल बंदी के कारण उनसे छूट गए। बीते अगस्त में एनसीईआरटी ने बिहार के बच्चों पर किए अध्ययन में पाया कि ऑनलाइन कक्षाओं के कारण 65 फीसदी छोटे बच्चे लिखना लगभग भूल गए और बच्चे यही नहीं समझ पा रहे थे कि उन्हें कॉपी पर शुरूआत कहां से करनी है।

इस शोध में यह भी पाया गया कि 75 प्रतिशत बच्चों की लिखावट बहुत खराब हो गई। ये हाल सिर्फ एक राज्य का नहीं है, 20 माह से भी ज्यादा वक्त से स्कूलबंदी रहने के कारण बच्चों की स्मृति पर गहरा असर हुआ है। एक दिन पहले ही आए नेशनल सैंपल सर्वे से पता लगा कि भारत में सिर्फ 20 प्रतिशत बच्चों को ही ऑनलाइन कक्षाएं उपलब्ध हो पायीं, इनमें से भी आधे बच्चों ने ही ऑनलाइन कक्षाएं लीं। यह बताता है कि ज्यादातर बच्चे असल में शिक्षा से पूरी तरह महरूम रहे, जिससे वे पढ़ना-लिखना भूल गए।

इसे भी देखें : भगवान बिरसा मुंडा के जन्म दिवस को ‘जन-जातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा

तालाबंदी के दौरान बच्चों पर घरेलू शोषण बढ़ने के कई मामले सामने आए। इतना ही नहीं, यूनिसेफ समेत तमाम वैश्विक संस्थाओं ने चिंता जतायी कि डिजिटल उपकरणों के असुरक्षित उपयोग के कारण पहले के मुकाबले कोरोनाकाल में बच्चों का ज्यादा शोषण हो रहा है। जब पूरी दुनिया संवाद के लिए मोबाइल, इंटरनेट जैसी तकनीक पर पूरी तरह निर्भर थी, तब बच्चों पर कई तरह के ऑनलाइन संगठित अपराध हुए, जिसमें निजी डाटा में सेंधमारी, तस्वीरों से छेड़छाड़ आदि शामिल है।

Advertisement

भारत में 1.19 लाख से अधिक बच्चों ने अपने माता-पिता में से किसी एक को महामारी के कारण खो दिया। प्रतिष्ठित लांसेट पत्रिका में छपे इस अध्ययन में मार्च-2020 से अप्रैल-2021 तक अपनों को खोने वाले भारतीय बच्चों पर अध्ययन हुआ। इस अध्ययन में बताया गया कि अपने अभिभावक को खोने के बाद ये बच्चे गरीबी व दुर्व्यवहार का सामना कर रहे हैं।

Mobile Addiction

अपनों को खोने के बाद आयी चुनौतियों के कारण ये बच्चे गहरे मानसिक, स्वास्थ्य व भावनात्मक समस्याओं से जूझ रहे हैं। बता दें ‎कि कोरोना महामारी का दौर दुनिया में अगर सबसे ज्यादा चुनौती भरा किसी के लिए रहा है तो वे हमारे मासूम बच्चे हैं। महामारी के कारण पूरी दुनिया में सबसे पहले स्कूल ही बंद किए गए थे, जिसने बच्चों से उनके दोस्तों व शिक्षकों को लंबे वक्त के लिए दूर कर दिया।

This post has already been read 17362 times!

Sharing this

Related posts